ना चलाओ बाण, व्यंग के ऐ विभिषण, ताना ना सह पाऊं, क्यूँ तोड़ी है ये माला, तुझे ए लंकापति बतलाऊं, मुझमें भी है तुझमें भी है, सब में है समझाऊँ, ऐ लंकापति विभीषण, ले देख, मैं तुझको आज दिखाऊं ॥ श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में, देख लो मेरे दिल के नगीने में ॥ मुझको कीर्ति ना वैभव ना यश चाहिए, राम के नाम का मुझ को रस चाहिए, सुख मिले ऐसे अमृत को पीने में, श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में ॥ अनमोल कोई भी चीज, मेरे काम की नहीं, दिखती अगर उसमे छवि, सिया राम की नहीं ॥ राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरण करूँ, सिया राम का सदा ही मै चिंतन करूँ, सच्चा आनंद है ऐसे जीने में, श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में ॥ फाड़ सीना हैं, सब को ये दिखला दिया, भक्ति में मस्ती है, सबको बतला दिया, कोई मस्ती ना, सागर को मीने में, श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में ॥ श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने मे, देख लो मेरे दिल के नगीने में ॥